8 दिसंबर (PTI): पर्वतीय राज्य हिमाचल प्रदेश मे राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार मिशन की सहाय से महिला स्वसहाय जूथ ग्रामीण अर्थतन्त्र मे क्रांतिकारी बदलाव ला रहे है, जहा गृहिणीया अब उद्यमसाहसी बन रही है ।
राज्यभर मे फैले तकरीबन 43000 स्वसहाय जूथो मे चार लाख से ज्यादा महिलाए शामिल है, और राज्य के विभिन्न भागों मे सारस फैयर मे वे अपने उत्पादन बेच कर अच्छा मुनाफा कमा रहे है । अन्य राज्यों मे भी खाद्य पदार्थ, हस्तकला की वस्तुए और ऑर्गेनिक उत्पादनो की अच्छी मांग के चलते यह स्वसहाय जूथ अन्य राज्यों मे भी अपने उत्पादन सफलतापूर्वक बेच रहे है ।
स्व सहाय जूथो मे शामिल महिलाए तकरीबन वार्षिक रुपया एक लाख जितना कमा रही है और चार महिलाए “लखपति दीदी” बनी है, जिनमे से दो को प्रधानमंत्री द्वारा सन्मानित किया गया है । जो गृहिणीया पहले घर की चार दीवारों के भीतर ही सीमित रहती थी, वे अब बढचढ़कर आर्थिक कार्यों मे हिस्सा ले रही है, फैयर और विविध मंचों से अपने उत्पादनो को बेचने के लिए ग्राहकों से सीधा संवाद कर रही है ।
हिमाचल ग्रामीण रोजगार मिशन के मिशन एक्जिक्यूटिव मोहित कंवरने बताया है की, “इस मिशन के अंतर्गत चल रहे स्व-रोजगार कार्यक्रम मे महिलाए बढचढ़कर हिस्सा ले रही है, अच्छी कमाई हासिल कर रही है, चार महिलाए लखपति बनी है जिनमे से दो को माननीय प्रधानमंत्री द्वारा सन्मानित किया गया है । हमारा प्रयास ग्रामीण महिलाओ को आत्मनिर्भर और सक्षम बनाने की दिशा मे है । चार लाख महिलाए सालाना एक लाख रुपये तक कमा रही है और ऑर्गेनिक उत्पादनो को भी बढ़ावा दे रही है । “
दस महिलाओ के बने ऐसे एक स्वसहाय जूथ की संचालक उषा ने कहा, “लोक फर्टिलाइजर्स और स्प्रे के रूप मे जहरीले उत्पाद खा रहे है, जबकि हमारे उत्पाद सम्पूर्ण रूप से ऑर्गेनिक है और हम पपीता के बीज के साथ-साथ मक्के भी रु.4000 प्रति क्विंटल के दाम पर बेच रहे है । हमलोग छ कनाल मे हल्दी भी उगा रहे है और और आमला जाम, मुरब्बा जैसे उत्पादन भी उपलब्ध कर रहे है ।”
कुलु जिले के नग्गार से अन्य एक लखपति दीदी गीता ने कहा है की उनका जूथ परंपरागत एवं चिकित्सा से जूड़े ऐसे पौधों के संवर्धन पर प्रयास कर रहा है जिसे आज की पीढ़ी ने भूला दिया है और वे अपने अखरोट और खुबानी तेल जैसे अपने उत्पादन बाजार मे बेच कर अच्छा मुनाफा भी कमा रही है । गीता ने बताया की उनके उत्पादनो की अन्य राज्यों मे अच्छी मांग है और वे पोस्ट ऑफिस के जरिए अपने उत्पादन अन्य राज्यों मे भी सफलतापूर्वक उपलब्ध बना रहे है । गीता ने बताया है की जब वे एक नौकरी पाने मे असफल रहे, तब उन्होंने यह स्वसहाय जूथ की शुरुआत की और आज पाँच साल मे उनके जूथ की आय सालाना सात से आठ लाख तक हो गई है ।
शिमला के रामपुर से अन्य एक स्वसहाय जूथ की संचालक विद्या ने बताया है की वे विविध दालों एव लाल चावल की फासले उगा रहे है । पहले उनके उपज सिर्फ स्वउपभोग तक सीमित थी, किन्तु अब वह उनके जीवननिर्वाह का स्त्रोत बन गया है । उनके जूथ मे तेरह से चौदह सदस्य है और सभी सदस्य सालाना एक लाख रुपया तक कमा रहे है ।
बहुत सारी महिलाओने बताया की पहले उन्हे अपने परिवार के सदस्यों से पैसे मांगने पड़ते थे, अब वे न सिर्फ आत्मनिर्भर बनी है, किन्तु परिवार को सहारा भी दे रही है ।